हमारी भी निग़ाहों नें उनसे तौबा किया है...
बेरंग आईनों में उम्दा ज़हन देखनें की आदत नहीं उन्हें...!!
तुम्हारी दुआ में इतना असर नहीं रहा... कि
बेदाग आईनें को दागदार कर सके...!!
अज़ीब शिकायत है उनकी... इतनीं दूर से...
हर शाम चाय पर आनें की ज़िद... कर रहे थे वो... आज से... !!
तम्मनाओं के शहर में शहर में जाकर...
मैं मेरी मंज़िल का पता पूछ लाऊँगा...
ख़ैर... मुझे इश्क़ इंसानों से क्या होगा...
मुक़ाम से मोहब्बत का क़िस्सा बना जाऊँगा...!!
इल्म मेरी हैसियत का शायद सबको न रहा हो...
सरेबाज़ार पूछ कर उन्होंने ये किस्सा मेरा मशहूर कर दिया...!!
सुनाई देती है चीख़ें बेतहाशा... घर पर रोनें की लेकिन...
श्मशान में अपनें भी जलानें की जल्दी में रहते हैं...!!
मन की शीतलता खोजनें की बजाए...
तन तृप्ति को प्रेम समझनें के भरम में है दुनियाँ...!!
वो सवाल अक़्सर बहुत देर तक चुभते हैं...
जिनके जवाब मालूम होते हुए भी... हम कह नहीं सकते...!!
गर ये सोच लेते कि... चाँद हो तुम किसी बच्चे के खाब का...
तो यक़ीनन उदास चेहरे के साथ घर से निकला नहीं करते...!!
sad shayari
मलाल रहेगा उम्र भर... तेरी ना-मौजूदगी का...
तू टकराया ही क्यों... जब मेरा होनें की कोई आरज़ू ही नहीं थी...!!
मेरे वज़ूद की दास्ताँ कुछ अलग नहीं साहब...
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(अगली लाइन क्या होनीं चाहिए...? 🤔🤔🤔 )
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